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भारतीय किसान जैविक खेती के उपयोग से स्वावलंबी बनें व किसानों की आत्महत्या बंद हो ,

इसलिए किसानों के लिए एक छोटी-सी पहल “किसान अप्डेट” …

‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती शुरू की, हर साल लाखों की आमदनी !

खेती में नए-नए प्रयोग कर अलग पहचान बनाने वाले सूरत जिले की कामरेज तहसील के वाव गांव निवासी प्रगतिशील किसान जिगर देवसई ने पिछले तीन साल से मध्य अमेरिका के फल ‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती शुरू की है। इस फसल में केवल एक बार निवेश के बाद पारंपरिक खेती के मुकाबले लगभग 25 वर्षों तक इससे आमदनी हो सकती है।

तीन साल पहले कामरेज के वाव गांव निवासी 30 वर्षीय किसान जिगर ने तीन बीघा जमीन में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की थी। उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट एक प्रकार का कैक्टस बेल है। एक पौधे से 8 से 10 फल प्राप्त होते हैं। 100 से 300 ग्राम वजनी इन फलों की सीजन में 200 से 400 रुपए प्रति किलो की कीमत मिल जाती है। ड्रैगन फ्रूट के पौधों को सहारा देना पड़ता है। इसलिए किसान जिगर ने सीमेंट के खंभे बनवाकर खेत में लगवाए हैं।

इस काम में किसान जिगर के पिता गिरीश भाई ने भी मदद की। गिरीश के मार्गदर्शन में तीन बीघा खेत में किसान जीगर ने ड्रैगन फ्रूट के 300 हजार पौध (नर्सरी) लगाकर नई खेती की वर्ष 2015 में शुरुआत की। इस दौरान गांव के अन्य किसानों ने जिगर और उनके पिता की मजाक (हंसी) भी उड़ाते थे। इसके बावजूद भी उन्होंने ड्रैगन फल की खेती से मुंह नहीं मोड़ा। आखिरकार पिता-पुत्र ने तीन बीघा भूमि में 751 सीमेंट (आरसीसी) के खंभे लगवाए। उन्होंने सूरत के भराडिया गांव की नर्सरी से ड्रैगन फल की 3000 हजार वेल मंगवाई और प्रति खंभे चार ड्रैगन फ्रूट के पौधे की बुवाई की।

उन्होंने बताया कि सामान्य तौर पर बुवाई के 20 माह बाद डै्रगन फ्रूट की फसल तैयार होती है। वहीं बुवाई के नौ माह बाद ही उनके खेत से फल का उत्पादन शुरू हो गया। उन्होंने रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का उपयोग किया, वहीं कीटनाशक दवा का भी उपयोग से दूर रखा। किसान ने बताया कि ‘कैक्टस प्रजाति का होने के कारण ड्रैगन फ्रूट को पानी की कम ही जरूरत पड़ती है।

इसमें चरने या कीड़ों लगने का जोखिम भी नहीं है। ड्रिप विधि से सिंचाई के चलते इसमें पानी की बहुत बचत होती है। पिछले तीन साल में पहले साल पांच लाख, दूसरे साल 7 लाख और इस बार करीब आठ लाख की आमदनी होने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि पहले को किसान पिता-पुत्र पर हंसते थे, वही किसान आज ड्रैगन फ्रूट की खेती देख मेरी प्रशंसा करते नहीं थकते।

मानसून में फसल होती है तैयार

मानसून में ड्रैगन फल तैयार होता है। एक बार बुवाई के बाद 25 साल तक उत्पादन मिल सकता है। मानसून के चार माह में प्रत्येक 40 दिनों के अंतराल में फल पकते हैं। तीन बीघा भूमि में पहले चरण में डेढ टन से अधिक फ्रूट निकलते है। एक फ्रूट का वजन औसतन 100 से 300 ग्राम तक होता है। प्रति किलो 200 से ४00 रुपए का भाव मिलते हैं।

सूरत के भराडिया गांव की नर्सरी से मंगवाए ड्रैगन फ्रूट के पौधे

किसान जिगर ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की पौध (नर्सरी) सूरत जिले की मांडवी तहसील के भराडिया गांव स्थित नर्सरी से मंगाई थी। खेत में आरसीसी पोल को 2 गुणा 2 व्यास वाले गड्ढों में खाद और कीटनाशक दवा डालकर गाड़ा गया। पोल से पोल की दूरी 10 फीट है। तीन बीघा में 3000 पौधे पोल से सटाकर रोपित किए गए। पूरे खेत में ड्रिप पद्धति से सिंचाई की की जाती है।

ड्रैगन फ्रूट सेहत के लिए फायदेमंद

विशेषज्ञों के अनुसार गुलाबी रंग का स्वादिष्ट फल ड्रैगन फ्रूट सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। इसमें काफी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट के गुण मौजूद होते हैं। इसके अलावा विटामिन सी, प्रोटीन और कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में होता है। इस फल का प्रयोग कई बीमारियों में लाभदायक माना गया है।

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कपास की जैविक खेती- लाभ, उपयोग और उत्पादन !

देशी, नरमा और बी टी कपास की जैविक खेती का अपना महत्व है । क्योकि कपास का रेशे वाली फसलों में प्रमुख स्थान है । कपास के रेशे से वस्त्र बनाये जाते हैं और इसका रेशा निकालने के बाद इसके बिनौले को पशुओं को खिलाने के काम में लाया जाता है । बिनौले से तेल भी निकला जाता है । बात जब कपास की जैविक खेती से उसके रेशे, बिनोले और तेल की हो उन उत्पादों की महत्वता अपने आप बढ़ जाती है । क्योकि लोग रसायनिक खेती के दुष परिणामों को जान चुके है और रसायनिक तरीके से उत्पादित उत्पादों से दूर जाने लेगे है । इस लेख में कपास की जैविक खेती कैसे करें की उत्तम जानकारी का उल्लेख है ।

कपास की जैविक खेती हेतु जलवायु

कपास के पौधे के लिए उच्च तापमान, साधारणत 20 डिग्री सेंटीग्रेट से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तक, की आवश्यकता पड़ती है, किन्तु यह 40 डिग्री सेंटीग्रेट तक की गर्मी में भी पैदा कि जा सकती है| पाला या ओला इसकी फ़सल के लिए घातक है| इसलिए इसके पौधे के विकास के लिए कम से कम 200 दिन पाला रहित ऋतु चाहिए| टिंडे खिलने के समय स्वच्छ आकाश, तेज और चमकदार धूप का होना आवश्यक है| जिससे रेशे में पर्याप्त चमक आ सके तथा टिंडे पूरी तरह खिल सकें और कपास की जैविक खेती के लिए कम से कम 60 सेंटीमीटर वर्षा का होना आवश्यक है| 150 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा का होना हानिकारक होता है|

उपयुक्त भूमि

कपास की जैविक खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में कि जा सकती है, किन्तु इसके लिए उपयुक्त भूमि में अच्छी जलधारण और जल निकास क्षमता होनी चाहिए| जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है, वहां इसकी खेती अधिक जल-धारण क्षमता वाली मटियार भूमि में की जाती है| जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हों वहां बलुई तथा बलुई दोमट मिटटी में इसकी खेती की जा सकती है| यह हल्की अम्लीय और क्षारीय भूमि में उगाई जा सकती है| इसके लिए उपयुक्त पी एच मान 5.5 से 6.0 है| हालाँकि इसकी खेती 8.5 पी एच मान तक वाली भूमि में भी की जा सकती है|

उन्नत किस्में

किसान भाइयों वर्तमान में बी टी कपास का बोलबाला है| जिसकी किस्मों का चुनाव आप अपने क्षेत्र, परिस्थितियों और क्षेत्र की प्रचलित किस्म के अनुसार ही करें| लेकिन कुछ प्रमुख नरमा, देशी और संकर कपास की प्रमुख अनुमोदित किस्में इस प्रकार है, जैसे-

बी टी किस्में- आर सी एच- 308, आर सी एच- 314, आर सी एच- 134, आर सी एच- 317, एम आर सी- 6301, एम आर सी- 6304 आदि है|

संकर किस्में- फतेह, एल डी एच- 11, एल एच एच- 144, धनलक्ष्मी, एच एच एच- 223, सी एस ए ए- 2, उमा शंकर, राज एच एच- 116 (मरू विकास), जे के एच वाई 1 व 2, एन एच एच- 44, एच एच वी- 12, एच- 8, डी एच- 5 व 7 और एच- 10 आदि प्रमुख है|

नरमा कपास- एच- 1117, एच एस- 45, एच एस- 6, एच- 1098, एफ- 286, एल एस- 886, एफ- 414, एफ- 846, गंगानगर अगेती, बीकानेरी नरमा, आर एस- 875, कंडवा- 3, के सी- 94-2, पी के वी- 081, एल आर के- 516,                गुजरात कॉटन- 12, 14 व 16, एल आर के- 516 और  सी एन एच- 36 आदि प्रमुख है|

देशी कपास- एल डी- 230, एल डी- 327, एल डी- 491, डी एस- 1, डी एस- 5, एच- 107, एच डी- 123 और आर जी- 8 आदि प्रमुख है|

खेत की तैयारी

फफूंद व इल्ली का प्रकोप कम करने के लिए गरमी मे गहरी जुताई करे और खेत को तपने के लिए छोड़ दें, इससे फफूंद के बीज तथा इल्ली मर जाती है| जुताई ढलान के विरुद्ध दिशा में करें, ताकि सभी कतार के बीच के कुड खेत मे पानी के बहाव में अवरोधक बनते हैं, जिससे पानी को मिटटी द्वारा सोखने मे अधिक समय मिलता हैं| फसल बुवाई के लिए खेत के खरपतवारों और पूर्व की फसल अवशेषों की सफाई कर गहरी जुताई करें एवं मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार खाद व उर्वरक की व्यवस्था करे| बुवाई से पहले मेडों को साफ करें और किट को सरंक्षण देने वाले गाडर, कासकी, अंगेड़ो, जंगली भिंडी आदि खरपतवारको नष्ट करे|

बीज की मात्रा

संकर तथा बी टी के लिए 4 से 5 किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर डालना चाहिए| देशी तथा नरमा किस्मों की बुवाई के लिए 12 से 16 किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें| बीज लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर डालें|

भूमि और बीजोपचार

जैसा की कपास की जैविक खेती में किसी भी प्रकार के रसायन का उपयोग नही करना होता है, इस लिए बीजोपचार और भूमि उपचार इस प्रकार करें, जैसे-

भूमि उपचार- कपास की जैविक खेती हेतु भूमि शोधन के लिए 2.5 से 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राइकोडर्मा विरिडी को 70 से 100 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8 से 10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई से पूर्व आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिए|

बीजोपचार- बीज शोधन हेतु 4 से 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति किलो ग्राम बीज की दर से प्रयोग कर बुआई करना चाहिए| इससे जड़ सड़न, तना सड़न, डैम्पिंग आफ, उकठा, झुलसा आदि फफूंद जनित रोगों से छुटकारा मिलेगा|

बुवाई का समय तथा विधि

कपास की जैविक खेती के लिए बुआई का समय और बुआई का तरीका इस प्रकार है, जैसे-

1. कपास की बुवाई का उपयुक्त समय अप्रेल के द्वितीय पखवाड़े से मई के प्रथम सप्ताह तक है|

2. अमेरिकन किस्मों की कतार से कतार की दूरी 60 सेन्टीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेन्टीमीटर रखनी चाहिये|

3. देशी किस्मों में कतार से कतार की दूरी 45 सेन्टीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेन्टीमीटर रखनी चाहिये|

4. बी टी कपास की बुवाई बीज रोपकर (डिबलिंग) 108 X 60 सेंटीमीटर अर्थात 108 सेंटीमीटर कतार से कतार और पौधे से पौधे 60 सेंटीमीटर या 67.5 X 90 सेंटीमीटर की दूरी पर करें|

5. पौलीथीन की थैलियों में पौध तैयार कर रिक्त स्थानों पर रोप कर वांछित पौधों की संख्या बनाये रख सकते हैं|

6. लवणीय भूमि में यदि कपास बोई जाये तो मेड़े बनाकर मेड़ों की ढाल पर बीज उगाना चाहिए|

जैविक खाद

कपास की जैविक खेती के लिए बुवाई से 15 दिन पूर्व खेत में 30 से 40 टन प्रति हैक्टेयर अच्छी सड़ी गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट 25 से 30 टन प्रति हैक्टेयर बिखेरने के बाद खेत की अच्छी जुताई करें एवं पाटा चलाकर खेत समतल कर लें| बारानी खेती में कड़ी धूप में गहरी जुताई युक्त खेत को न छोड़ें, इससे मृदा नमी में कमी आ जाती है| जिससे अपेक्षित मात्रा में बीज जमाव नहीं होता है|

अच्छी सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट 2.0 क्विंटल प्रति हैक्टेयर में 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर ट्राइकोडर्मा पाउडर बुवाई से 10 से 15 दिन पूर्व मिला लें एवं ढेर को अच्छी तरह जूट के बोरे या पुवाल से वायुरूद्ध करें| कपास की जैविक खेती के लिए बुवाई से पूर्व उपचारित खाद को खेत में फैला लें, ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से फफूंद और कवक जनित रोगों की रोकथाम प्रभावी ढंग से हो जाती है|

खरपतवार नियंत्रण

फसल बढ़वार के 25 से 30 दिन बाद 3 से 4 बार ट्रैक्टर चालित कल्टीवेटर या बैल चालित कल्टीवेटर द्वारा गुड़ाई करना चाहिए पहली गुड़ाई सिंचाई के पूर्व अवश्य करनी चाहिए, शेष निराई-गुड़ाई 2 से 3 बार फुल व टिंडे बनने के पहले ही समाप्त कर लेना आवश्यक है| इस बात का बिशेष ध्यान दे कि कपास कि फसल बढ़वार वाली अवस्थाओं में पूरी तरह खरपतवार रहित हो|

सिंचाई प्रबंधन

पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद करे, यदि वर्षा न हो तो 2 से 3 सप्ताह के अन्दर सिंचाई कि आवश्यकता होती है| इस बात का बिशेष ध्यान दे कि फुल और फल या टिंडे बनते समय पानी कि कमी न हो मध्य सितम्बर में यदि खेत में नमी न हो तो हलकी सिंचाई करनी चाहिए, ऐसा करने से टिंडे शीघ्र फटते है| ध्यान रखें फसल बढ़वार के समय वर्षा का पानी खेत में न रुकने दे| सिंचाई करते समय पानी हल्का लगाये यदि पौधों के पास पानी रुक जाए, तो यथा शीघ्र निकाल दे खेत में जल निकास हेतु एक नाली रखें| कपास की जैविक फसल में टपका सिंचाई प्रभावी पाई गई है| इससे पैदावार अधिक और पानी की भी बचत होती है|

कीट नियंत्रण

शस्य क्रियाएं

1. ऐसे खेत का चुनाव करें जिसमें लगातार कपास की फसल न ली गई हो|

2. गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करके कुछ समय खुला छोड़ देना|

3. कपास के खेत में फसल के ठूंठ और डंठल आदि न छोड़ें बल्कि उनको इकट्ठा करके जला देना चाहिए|

4. प्रतिरोधक या सहनशील किस्मों का चयन करना चाहिए|

5. कपास की जैविक खेती हेतु उपचार कर के बोना चाहिए|

6. समय से बुवाई करना और लोबिया या प्याज के साथ मिली-जुली खेती करना|

7. कपास के साथ या उसके आस-पास भिन्डी और मूंग की फसलें न उगाना|

8. कपास की जैविक फसल हेतु आखिरी जुताई के बाद अवशेषों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए|

9. खेत और उसके चारों ओर खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण करना|

10. शुरू के 2 से 3 साल लम्बी अवधि में पकने वाली किस्मों की बुवाई कदापि न करें|

यान्त्रिक उपाय

1. कपास की जैविक फसल की बढ़वार अवस्था में ग्रसित शाखाओं या प्रारंभिक कलियों को तोड़कर नष्ट कर देना|

2. कपास की जैविक फसल में 110 दिन की फसल पर ऊपरी शाखाओं को काटकर नष्ट कर देना|

3. गंधपास (फेरोमोनट्रेप) लगाकर अमेरिकन बालवर्म या स्पाडेप्टेरा के प्रकोप का आंकलन करना और गन्ध पास में एकत्र कर नरों को नष्ट करना|

4. प्रकाश प्रपंच (लाइटट्रेप) फसल के शत्रु और मित्र कीटों का आंकलन करने हेतु प्रयोग करें|

मित्र कीटों को संरक्षण

1. प्रारम्भ से ही प्रति सप्ताह फसल का सावधानी से अवलोकन करके कीड़ों के प्रकोप तथा मित्र परभक्षी परजीवी कीटों के स्तर का आंकलन करना|

2. कपास के प्रत्येक 10 पंक्ति के बाद मक्का या लोबिया की दो पंक्ति होने से मित्र प्राणी समूह के संरक्षण में मदद मिलती है|

3. कौआ मैना नीलकंठ आदि पक्षियों के लिए पक्षी-ठिकाना बर्ड पर्चर की व्यवस्था की जाए|

उपयोगी प्रक्रिया

1. माहूं आदि कीड़ों के प्रकोप के समय 15 दिन के अन्तराल पर दो बार 50000 प्रति हेक्टेयर की दर से क्राइसोपर्ला के अण्डे और प्रथम अवस्था के शिशु छोड़े|

2. कपास के टिंडे भेदक कीड़ों के दिखाई देने पर या बुवाई के 40 दिन बाद 1,50,000 ट्राइकोगामा किलोनिस प्रति हेक्टेयर सप्ताह में 6 बार छोड़े|

3. अमेरिकन कपास भेदक और तम्बाकू सूंड़ी (हेलिमेथिस स्पाडेप्टेरा) के नियंत्रण हेतु एन पी वी 250 लार्बलइक्यूवलेन्ट (250 प्रभावित सूंड़ियों से तैयार रस) प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें|

4. बैसिलस थ्यूरिन जियनेसिस आधारी कीटनाशक पदार्थों का 500 ग्राम से एक किलोग्राम पदार्थ प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार प्रयोग करें|

5. कपास की जैविक खेती हेतु जड़गलन क्षेत्रों में ट्राइकोडरमा हार्जिवेनम की 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें|

किसानों के लिए ध्यान रखने योग्य बातें

1. प्रमाणित कम्पनी से ही प्रोडक्ट खरीदे और उनकी रशीद लेना ना भूले|

2. कपास की जैविक फसल को रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशक दवाओं से दूर रखें|

3. कपास की जैविक फसल करने से पहले बाजार की सम्भावनाओं का विश्लेष्ण करे ताकि आप का उत्पाद बाज़ार में अच्छी कीमत पर सरलता से बिक सके|

4. जैविक खेती के लिए सरकार द्वारा किए जा रही प्रयासों की जानकारी रखें और सरकार द्वारा चलाए जा रहें कार्यक्रमों में सिरकत करे|

5. सरकारी योजनाओं के लिए अपने कृषि अधिकारी के सम्पर्क में रहें ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकें|

किसान इन सब बातों से परिचित होकर ही जैविक खेती की तरफ रुख करे आज की बेहतर तकनीकी के साथ जैविक खेती घाटे का सोदा नही है और परंपरागत खेती की तुलना में इसमें लागत भी बहुत कम है और जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहती है फैसला आप को करना है|

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